छठ पूजा, सूर्य आराधना और लोक आस्था का महान पर्व है, जो भारत के पूर्वी राज्यों—बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मुख्य रूप से मनाया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें प्रकृति, जल, सूर्य और मिट्टी के प्रति कृतज्ञता की भावना भी झलकती है। वर्ष 2025 में छठ पूजा 27 अक्टूबर से प्रारंभ होकर 28 अक्टूबर तक मनाई जाएगी।
छठ पूजा 2025 तिथि और कैलेंडर
- नहाय-खाय: 25 अक्टूबर 2025 (शनिवार)
- खरना: 26 अक्टूबर 2025 (रविवार)
- संध्या अर्घ्य: 27 अक्टूबर 2025 (सोमवार)
- उषा अर्घ्य और पारण: 28 अक्टूबर 2025 (मंगलवार)
व्रत की प्रमुख विधि
पहला दिन – नहाय-खाय
इस दिन व्रती पवित्र स्नान करते हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। घर में शुद्धता बनाए रखना अत्यंत जरूरी होता है।
दूसरा दिन – खरना
व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को प्रसाद तैयार करते हैं जिसमें गुड़ और चावल की खीर, रोटी या चना दाल की पूड़ी होती है। यही प्रसाद परिवार और पड़ोसियों में बांटा जाता है।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर)
यह छठ पूजा का सबसे पवित्र समय होता है। व्रती संध्या के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं।
- सूप (बांस की टोकरी) में ठेकुआ, केला, मौसमी फल, दीपक और नारियल सहित प्रसाद सजाकर घाट पर जाती हैं।
- अस्त होते सूर्य को जल व दूध से अर्घ्य अर्पित किया जाता है।
- यह पूजा जीवन के अंत और नई शुरुआत के संतुलन का प्रतीक मानी जाती है।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर)
भोर होते ही व्रती घाट पर एकत्रित होते हैं और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
- उषा अर्घ्य नई आशा, समृद्धि और ऊर्जा का प्रतीक है।
- अर्घ्य देने के बाद 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत शरबत, दूध और ठेकुए के साथ पारण करके पूरा किया जाता है।
छठ पूजा की सामग्री सूची
- 3 बड़ी बांस की टोकरियाँ
- बांस या पीतल के सूप
- घी का दीपक और रुई की बाती
- दूध, चावल, सिंदूर, हल्दी, गन्ना, सुथनी और नारियल
- मौसमी फल (केला, अमरूद, नारंगी, नाशपाती)
- ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, सूजी का हलवा, पूड़ी और खीर
सभी सामग्रियों को पूरी पवित्रता और श्रद्धा के साथ तैयार किया जाता है, क्योंकि छठ पूजा में शुद्धता सर्वोपरि मानी जाती है।
छठ पूजा का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व
धार्मिक महत्व:
वेदों के अनुसार, सूर्य ही संपूर्ण ब्रह्मांड के जीवनदाता हैं। छठ पूजा में सूर्य और प्रकृति की आराधना करके व्यक्ति आरोग्य, सफलता और समृद्धि की कामना करता है।
सांस्कृतिक महत्व:
यह पर्व भारतीय संस्कृति की सादगी, आत्मसंयम और सामूहिकता का प्रतीक है। इसमें कोई पंडित या भव्य आयोजन नहीं, बल्कि स्वच्छता, अनुशासन और प्रकृति से जुड़ाव प्रमुख होते हैं।
ज्योतिषीय महत्व:
कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य विशेष खगोलीय स्थिति में रहते हैं। इस दौरान उनकी किरणें मानव शरीर में ऊर्जा का संचार करती हैं। अर्घ्य देने से शरीर की नकारात्मकता और रोग निवारण की शक्ति बढ़ती है।
प्रसाद का आध्यात्मिक महत्व
छठ का ठेकुआ सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि यह संयम, श्रम और शुद्धता का प्रतीक है। भक्तजन इसे हाथ से बनाकर श्रद्धापूर्वक अर्पित करते हैं। इस प्रसाद को कभी भी तला हुआ या अपवित्र स्थान पर नहीं रखा जाता।
छठ पूजा और जीवन दर्शन
छठ पूजा हमें यह सिखाती है कि जीवन की हर कठिनाई को त्याग और संयम से पार किया जा सकता है। जब हम सूर्य देव को डूबते और उगते दोनों रूपों में पूजते हैं, तो यह हमें बताता है कि हर अंत एक नई शुरुआत का संकेत है।
सूर्य देव और छठी मैया का आशीर्वाद आपके जीवन में नई रोशनी, समृद्धि और सुख लेकर आए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. छठ पूजा 2025 में नहाय-खाय कब है?
25 अक्टूबर 2025, शनिवार को नहाय-खाय होगा।
2. संध्या अर्घ्य 2025 में किस दिन दिया जाएगा?
27 अक्टूबर 2025, सोमवार को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा।
3. उषा अर्घ्य का क्या प्रतीकात्मक महत्व है?
यह नई शुरुआत, उम्मीद और प्रकाश का प्रतीक है, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
4. छठ पूजा में संध्या और उषा दोनों अर्घ्य क्यों दिए जाते हैं?
यह जीवन के दो पक्षों—अंत और आरंभ—दोनों के प्रति श्रद्धा दर्शाता है। यह संतुलन और निरंतरता का संदेश देता है।
Read In English